डिस्क्लेमर : यह पोस्ट एक शब्दकार द्वारा केवल शब्दों के महत्व एवं उनके सही प्रयोग पर लिखी गयी है . किसी राजनैतिक दल अथवा व्यक्ति का नाम केवल अपरिहार्य कारणों से किया गया है .
-अलबेला खत्री
गुजरात में चुनावी सरगर्मियां शुरू हो चुकी हैं . अब तक की सबसे लम्बी आचार
संहिता लगा कर चुनाव आयोग ने वर्तमान मुख्यमंत्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी के हाथ
बाँधने की कोशिश की है, वो अपनी जगह ठीक है . परन्तु चुनावी प्रचार की आड़ में
लोग उल्टा पुल्टा बोल रहे हैं . ये अच्छी बात नहीं है . बोलने में विवेक का प्रयोग
करना ज़रूरी है . वर्ना अर्थ के अनर्थ निकल जाते हैं और शब्दों का प्रभाव उल्टा
पड़ता है . जैसे कि एक कांग्रेसी नेता ने मोदी की तुलना बन्दर तक से कर डाली ...
अब कहाँ बन्दर और कहाँ मोदी ! दोनों में क्या समानता ? बन्दर बेचारा राम
का जीव है राजनीति का नहीं,,,,, शाकाहारी है लोकाहारी नहीं,,,, अहिंसक है
हिंसाचारी नहीं,,,,, निष्कपट है कपटी नहीं,,,,, नाच नाच कर अपने पालक का पेट
भरता है किसी की रोज़ी रोटी छीन कर उसे भूखा नहीं मारता ,,,,, भोला है सीधा है
और चंचल है घाघ, वक्री और सत्तालोलुप नहीं . जबकि मोदीजी तो ठीक इसके
विपरीत हैं . अपनी सत्ता बचाने और अपनी फोटो चमकाने के लिए ये साहेब कुछ
भी कर सकते हैं .
श्रद्धेय नरेन्द्र मोदी की तुलना बन्दर से नहीं की जानी चाहिय्रे . इससे बंदरों का बड़ा
अपमान होता है वे मानहानि का मुकद्दमा भी कर सकते हैं . क्योंकि जिस आदमी
में भेड़िये जैसा खूंख्वारपन, लोमड़ी जैसी चालाकी, चीते जैसी शक्ति, कौव्वे जैसी
कुदृष्टि, कुत्ते जैसी प्रखर वाक्शक्ति, बिल्ली जैसी घात, सांप जैसी कुंडली मारने की
सामर्थ्य और अजगर जैसी सुपाच्य शक्ति हो उसकी तुलना गरीब बन्दर से करना
ठीक नहीं . क्योंकि आदरणीय मोदीजी में सारे के सारे गुण हिंसक प्राणियों के हैं .
इसलिए कृपया कांग्रेसी नेता बोलने से पहले अपने शब्द तौलें .
जय हिन्द !
जय जय गरवी गुजरात
hasyakavi albela khatri on line |
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